श्रीमाणिक पौर्णिमा पर्व संपन्न हुआ

कल दिनांक २८ जनवरी को श्री माणिक पौर्णिमा पर्व का कार्यक्रम संपन्न हुआ। कोरोना संक्रमण की समस्या के कारण यह कार्यक्रम गत वर्ष के मार्च महीने में स्थगित हुआ था। इस वर्ष की शांकभरी पौर्णिमा के अवसर पर श्रीप्रभु के अनुग्रह से पुनश्च पौर्णिमा पर्व के कार्यक्रम की शुरुआत हुई है। कल आयोजित सत्संग के कार्यक्रम में श्रीजी ने ‘हिंदू धर्म के १० आदेश’ इस विषय पर व्याख्यान किया। बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने इस मार्गदर्शन का लाभ लिया। जो भक्तजन इस कार्यक्रम में प्रत्यक्षरूप से उपस्थित नहीं रह सके उनके लिए श्रीजी का यह प्रवचन यूट्यूब पर उपलब्ध है। श्री माणिकप्रभु इस चैनल पर प्रवचन का संपूर्ण वीडियों को देखा जा सकता है। पौर्णिमा का यह कार्यक्रम संयोगवश गुरुवार को ही होने से उपस्थित भक्तजनों को श्रीप्रभु मंदिर में श्रीप्रभु की पूजा तथा महा आरती में भी सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ। कार्यक्रम के पश्चात भंडारखाने में महाप्रसाद का वितरण संपन्न हुआ। हम सभी भक्तजनों को पुनः सूचित करते हैं, कि आने वाले माघ की पौर्णिमा से यह सत्संग का कार्यक्रम माणिकनगर में नियमितरूप से प्रतिमाह आयोजित किया जाएगा। सभी सद्भक्तों से निवेदन है, कि प्रति पौर्णिमा को आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में सम्मिलित होकर प्रभु दर्शन, महाप्रसाद तथा श्रीजी का अमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त कर श्रीकृपा संपादित करें।

माघ मास की अगली पौर्णिमा को ‘श्रीगुरुपौर्णिमा’ का अत्यंत पावन पर्व है। शनिवार २७ फरवरी के दिन संपन्न होने वाले इस विशेष कार्यक्रम में सबका स्वागत है।

 

 

श्रीगुरु आराधना उत्सव

मंगलवार ३ नवंबर २०२० को श्री सिद्‌धराज माणिकप्रभु महाराज की पुण्यतिथि के अवसर पर श्रीजी ने श्रीपादुकाओं की महापूजा संपन्न की। दोपहर में मुक्तिमंटप में श्रीजी ने महाराजश्री का सांवत्सरिक श्राद्ध संपन्न किया। आज पुण्यतिथि निमित्त महाराजश्री की आराधना का कार्यक्रम परंपरानुसार संपन्न हुआ। ३ से ८ नवंबर तक चल रहे श्री गुरु आराधना उत्सव के अंतर्गत नित्य सायं श्रीप्रभु मंदिर के कैलास मंटप में सातवार भजन का कार्यक्रम संपन्न हो रहा है। रविवार ८ नवंबर को श्री मनोहर माणिकप्रभु महाराज की आराधना के अवसर पर आराधना संपन्न की जाएगी। इस अवसर पर शाम के समय कीर्तन एवं भजन के कार्यक्रम आयोजित किए जाऍंगे।

क्रिकेट टूर्नामेंट २०२०

दिनांक १ नवंबर को माणिकनगर के नवनिर्मित क्रिकेट क्रीडांगण में ११वां श्री सिद्धराज माणिकप्रभु क्रिकेट प्रतियोगिता का फाइनल मॅच खेला गया। इस प्रतियोगिता में कुल ८ टीमों ने भाग लिया था। माणिकनगर की माणिक सोपर्ट्‌स एकॅडमी और कलबुरगी की ख्वाजा बंदा नवाज़ क्रिकेट क्लब के बीच हुए फाइनल मॅच में के.बी.एन कलबुरगी की टीम ने विजय प्राप्त की। माणिकनगर, हुमनाबाद तथा समीपस्थ स्थानों के क्रीडा प्रेमियों ने बड़ी संख्या में उपस्थित रहकर मॅच का आनंद लिया।

मॅच के उपरांत श्रीजी की दिव्य सन्निधि में पुरस्कार वितरण समारोह संपन्न हुआ। विशेष बात यह रही कि, इस वर्ष की प्रतियोगिता का आयोजन नवनिर्मित सिद्धराज क्रिकेट ग्रांउड में हुआ। क्रिकेट के इस मैदान में पांच टर्फ पिच बने हैं। क्रिकेट से और खेल कूद की अनेक विधाओं से ब्रह्मलीन श्रीजी का जो लगाव था उसको ध्यान में रखते हुए माणिकनगर में गत अनेक वर्षों से विविध क्रीड़ा प्रतियोगिताऍं आयोजित की जा रही हैं।

एम.एस.ए द्वारा खेल को बढ़ावा देने का जो कार्य निरंतर कईं वर्षों से चल रहा है उस कार्य में इस मैदान ने चार चांद लगा दिए हैं। इस मैदान से लग कर ही एक सुंदर फुटबॉल का भी मैदान बन रहा है। इस परिसर में क्रिकेट ग्राउंड, फुटबॉल ग्राऊंड, इंडोर बॅडमिंटन कोर्ट, स्विमिंग पूल, एथलेटिक ग्राऊंड तथा बास्केट बॉल कोर्ट भी बनाए गए हैं और आने वाले समय में इस प्रांत के युवा खिलाड़ी इस क्रीडा संकुल का भरपूर लाभ उठाएंगे इसमें कोई संदेह नहीं है। भविष्य में इस क्रिकेट मैदान पर रंजी स्तर के भी मॅच हो सकते हैं ऐसी संभावनाऍं हैं।

क्रीडा पोषक पुरस्कार

स्वनामधन्य श्री सद्गुरु सिद्धराज माणिकप्रभु महाराज ने माणिकनगर में खेल की जो विविध गतिविधियॉं प्रारंभ की थी उसके परिणामस्वरूप आज माणिकनगर इस प्रांत का एक महत्वपूर्ण क्रीडा केंद्र बन चुका है। सन्‌ १९६२ में श्रीमाणिकप्रभु क्रीडा मंडल की स्थापना करके महाराजश्री ने इस प्रांत को पहली बार क्रिकेट के खेल से परिचित कराया। उन्होंने वॉलीबॉल, खोखो और कब्बडी के अनेक बड़ी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया। महाराजश्री के नेतृत्त्व में माणिकनगर में प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर भव्य क्रिकेट का टूर्नामेंट आयोजित होता था जिसमें वे स्वयं खेला करते थे। खेतों में हसिया और फावड़ा चलाने वाले ग्रामीण युवाओं के हाथों में बल्ला थमाकर उनकी प्रतिभा का जो परिचय श्रीजी ने दुनिया को दिया उसको आज हम चमत्कार ही कह सकते हैं। इस टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए और इसे देखने के लिए दूर-दूर से क्रीडाप्रेमी माणिकनगर आते थे। अधिक से अधिक युवाओं को मैदान में लाकर उनकी प्रतिभानुसार किसी न किसी खेल से उन्हें श्रीजी ने जोड़ा और इस प्रांत में खेल की संस्कृति को बढ़ावा दिया। श्रीजी का मानना था कि समाज को आपस में जोड़कर रखने का और एकता बढ़ाने का यदि सबसे अच्छा कोई माध्यम है तो वह खेल ही है। इसलिए, समाज में समन्वय स्थापित करने का जो कार्य प्रभु ने २०० वर्षों पूर्व आरंभ किया था उसी कार्य का ब्रह्मलीन महाराजश्री ने खेल के माध्यम से  विस्तार किया। श्रीजी के इस दिव्य प्रयास के फलस्वरूप आज माणिकनगर का नाम खेल की दुनियॉं में अत्यंत आदर से लिया जाता है। आज इस प्रांत के लगभग सभी क्रीडाप्रेमी का यह स्वप्न होता है, कि वह कम से कम एक बार तो माणिकनगर के मैदान पर खेले।

खेल के संवंर्धन की दिशा में माणिकनगर में गत ६० वर्षों से जो कार्य हुआ है उससे प्रभावित होकर कर्नाटक सरकार ने इस वर्ष का क्रीडा पोषक पुरस्कार माणिक स्पोर्ट्‌स एकॅडेमी को दिया है। सोमवार २ नवंबर को कर्नाटक राज्योत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह में बेंगलूरू में माननीय मुख्य मंत्री की उपस्थिति में क्रीडा मंत्री श्री सी.टी रवि जी  ने श्री आनंदराज जी को ‘क्रीडा पोषक’ पुरस्कार से सन्मानित किया। यह हब सब के लिए अत्यंत हर्ष और गौरव का विषय है, कि माणिकनगर के क्रीडा प्रकल्पों की सराहना आज राज्य स्तर हुई है। हम इस अवसर पर श्रीजी के दिव्य कार्य का स्मरण करते हुए उन्हें कृतज्ञता पूर्वक नमन करते हैं। श्री आनंदराज जी के नेतृत्व में क्रीडा के क्षेत्र में आज जो कार्य यहॉं चल रहा है वह अत्यंत प्रशंसनीय है और इस नूतन उपलब्धि के लिए हम उनका हार्दिक अभिनंदन करते हैं। हम श्रीमाणिकप्रभु क्रीडा मंडल के सभी वरिष्ठ सदस्यों का तथा वर्तमान खिलाडियों का भी अभिनंदन करते हैं।

ज्ञान प्रबोध

परम पूज्य श्रीजी, अधिक मास के निमित्त गत तीस दिनों से  हम सभी को आपके कारण, गीता ज्ञानयज्ञ का लाभ लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हम प्रभुभक्तों के लिए यह जीवन का एक अविस्मरणीय प्रसंग होगा। आपके द्वारा किया गया प्रबोधन अद्वितीय था और मैं निःसंदेहरूप से यह कह सकता हूँ  कि, इस प्रबोधन से कईं लोगों का जीवन के तरफ देखने का नज़रिया बदल गया होगा।

आपका प्रबोधन बीजरूपी गीता का ज्ञानरूपी वृक्ष था। जिसने भी इस वृक्ष का फल चखा, वह धन्य हो गया ऐसा मेरा मानना है। श्रीमद्भगवद्गीता का विषय इतना गहन है, कि सहसा जब हम पढ़कर समझने का प्रयास करते हैं तो विषय का संपूर्ण बोध नहीं हो पाता। परंतु गीता के कठिनतम रहस्यों को भी आपने अपनी शैली में जिस कुशलता से प्रस्तुत किया, हम सचमुच मंत्रमुग्ध रह गए।

गीता का प्रत्येक वचन, विस्तार से समझाने हेतु आपके द्वारा दिए गए उदाहरण, दृष्टांत तथा अन्य प्रासंगिक सन्दर्भ, इतने बोधपूर्ण तथा मधुर थे कि, हम सब तृप्त हो गाए। बिलकुल वैसे ही जैसे शिशु, दूध का आकंठ पान करने के बाद तृप्त होता है।

मैं समझता हूं कि, इन तीस दिनों के प्रबोधन से श्रोतृ वर्ग में हर किसी का दुःख थोड़ा तो कम हुआ ही होगा और सबके भीतर कोई न कोई परिवर्तन अवश्य हुआ होगा। चाहे वह  कॉलेज का युवा होगा, चाहे कोई करियर की चिंता में नौकरी ढूंढने वाला हो, चाहे कोई विवाह के चक्कर में हो, चाहे कोई व्याधि से पीड़ित हो, या कोई वृद्ध हो, हर व्यक्ति को उसकी समस्या का हल ज़रूर मिला है।

आपने  जिस तन्मयता और करुणा के साथ हम सभी का प्रबोधन किया, उसके बदले यदि शिष्य होने के नाते आपके उपदेशों का एक प्रतिशत भाग भी हम आत्मसात करेंगे और थोड़ा सा भी यदि अनुसरण करेंगे तो निश्चित ही हमारा उद्धार होगा इसमें संशय नहीं है।

गत अनेक वर्षों से आपके आध्यात्मिक मार्गदर्शन के फलस्वरूप आज हमारे संप्रदाय में एक बहुत अच्छा परिवर्तन हुआ है। अनेक सद्भक्तों की वेदांत में रुचि बढ़ रही है और प्रभु के उपदेशों के अर्थ को जानने – समझने की लालसा बढ़ती जा रही है। यह एक बहुत ही कौतुकास्पद बदलाव है जिसका श्रेय केवल आपको जाता है। हमारे सांप्रदायिक वांग्मय में इतने अनमोल हीरे-मोती अनेक वर्षों से छिपे हुए हैं परंतु आज आपके मार्गदर्शन के कारण ही उन अनमोल उपदेशों को हम समझ पा रहे हैं, आत्मसात्‌ कर पा रहे हैं। आप तो सद्गुरु होने के नाते केवल अपना कार्य कर रहे हैं परंतु शिष्य होने के नाते हमारा भी यह कर्तव्य बनता है, कि हम आपके बताए हुए मार्ग पर सफलतापूर्वक चल कर दिखाऍं। हम भक्तजनों के जीवन को परिवर्तित करके हमारे भीतर अद्वैत वासना पैदा करने के लिए मैं समस्त भक्त परिवार की ओर से आपको नमनपूर्वक धन्यवाद कहता हूँ।

आपके मुखकमल से निरंतर ज्ञान की सरित इसी तरह बहती रहे और श्रीप्रभु के दिव्य संदेश के प्रचार-प्रसार का जो महान्‌ कार्य आप विश्वभर में कर रहे हैं उससे लाखों – करोड़ों लोगों का उद्धार होता रहे। ऐसी मंगल कामना प्रभु चरणों में करते हुए विराम लेता हूँ।

श्रीमधुमती पंचरात्रोत्सव

योगिनी व्यंकम्मा ने आजीवन श्रीप्रभुचरणों की सेवा की तथा प्रभुमहाराज के प्रति असीम श्रद्धा-भक्ति के फलस्वरूप परमपद को प्राप्त हुईं। व्यंकम्मा, वैश्य कुल की एक साधारण विधवा स्त्री थी परंतु श्रीगरुचरणों के प्रति उनकी जो अचंचल भक्ति थी उस भक्ति ने उनको असाधारण शक्ति एवं सामर्थ्य से युक्त देवीपद पर असीन किया। श्रावण कृष्ण त्रयोदशी शके १७८४ को जब देवी व्यंकम्मा पंचतत्त्व में लीन हुईं तब श्रीप्रभु ने स्वयं अपनी देखरेख में वैदिक विधि-विधान के साथ देवी की समाधिविधि पूर्ण करवाई। उस समय पर किसी भक्त ने श्रीप्रभु के समक्ष श्रीदेवी व्यंकम्मा के समाधि मंदिर के निर्माण का विषय निकाला तो श्रीप्रभु ने कहा “जब उसे मंदिर बनवाना होगा तब वह अपने सामर्थ्य के बल पर मंदिर का निर्माण अवश्य करवाएगी। हमें उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए।”

श्रीप्रभु की इस उक्ति के अनुसार श्री मार्तंड माणिकप्रभु महाराज के कार्यकाल में ३० वर्ष बाद देवी व्यंकम्मा के भव्य समाधि मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। श्री रावजीबुवा के नेतृत्त्व में मुंबई के प्रभुभक्तों ने इस मंदिर के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मंदिर के पूर्ण होने पर श्री मार्तंड माणिकप्रभु महाराज ने शुभमुहूर्त पर देवी व्यंकम्मा की समाधि पर विधिवत् श्रीचक्र की स्थापना की और तभी से श्रीसंस्थान में देवी व्यंकम्मा की उपासना भगवान्‌ दत्तात्रेय की शक्ति मधुमती श्यामला के रूप में की जाती है।

श्री सदगुरु मार्तंड माणिकप्रभु महाराज ने देवी व्यंकम्मा की महिमा को उजागर किया और भक्तजनों को देवी की अलौकिक लीलाओं का परिचय करवाया। श्रीदेवी की स्तुति में महाराजश्री द्वारा रचित जो पद आज हम गाते हैं उन पदों में महाराजश्री ने देवी व्यंकम्मा के आध्यात्मिक स्वरूप का अद्भुत वर्णन किया है। देवी के जिस दिव्य स्वरूप के दर्शन महाराजश्री ने पाए थे और जो कृपा उन्होंने प्राप्त की थी उसी अनुभूति को महाराजश्री ने अपनी सुंदर रचनाओं के माध्यम से हमारे लिए अभिव्यक्त किया है।

श्रीजी अपनी एक रचना में कहते हैं – ज्ञान विज्ञान मूल योनी। पंचकोषात्मक सिंहासनीं। जीव शिव मिथुन सौख्यदानी। चिन्मधुपानीं मग्नगानीं। तोची जगि शाक्त भावना त्यक्त सहज स्थितिमुक्त आत्मरतिसक्त। बालमार्तांड पादवंदी। जय जय उदो सदानंदी।। – जो ज्ञान और विज्ञान (विशेष ज्ञान) का मूल स्रोत है, जो अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय एवं आनंदमय इन पांच कोषों के सिंहासन पर आसीन होकर जीव एवं ईश्वर इस जोड़ी को सुख प्रदान करती है, जो ज्ञानरूपी मधु का पान करनेवाली है, जो अपने ही आत्मसुख के गायन में मग्न है, उस भगवती मधुमती के चरणों में सच्चा शाक्त, जीवभाव का त्याग करनेवाला, सहजस्थिति में मुक्ति का अनुभव लेनेवाला मार्तंड नामक बालक विनम्र भाव से नतमस्तक है, हे सदैव आनंद देनेवाली अथवा सदा आनंदरूप ब्रह्म से संयुक्त रहनेवाली माता, तुम्हारी जय हो।।

श्री मार्तंड माणिकप्रभु महाराज के ही काल में श्रावणमास में भगवती व्यंकम्मा की आराधना एवं आश्विनमास में मधुमती पंचरात्रोत्सव मनाने का क्रम प्रारंभ हुआ। महाराजश्री के काल से ही श्रीमधुमती पंचरात्रोत्सव यहॉं अत्यंत वैभवपूर्णरीति से मनाने की परंपरा रही है। संप्रति श्रीमधुमती पंचरात्रोत्सव आश्विन शुक्ल पंचमी से आश्विन शुक्ल नवमी तक माणिकनगर में अत्यंत हर्षोल्लास से मनाया जता है। पंचरात्रोत्सव के आरंभ के अवसर पर ललिता पंचमी के दिन श्रीजी पुण्याहवाचन संपन्न करते हैं। इसीके साथ श्री व्यंकम्मा मंदिर में घटस्थापन, मालाबंधन, अखंडदीपप्रज्ज्वालन, श्री देवी भागवत पारायण, चंडीपाठ, मल्लारी महात्म्य एवं मल्लारी सहस्रनाम पाठ इत्यादि कार्यक्रमों का श्रीगणेश होता है। पंचरात्रोत्सव के काल में नित्य सायं श्रीदेवी की लक्ष्मीसूक्तविधानपूर्वक पंचदशावर्तन श्रीसूक्त अभिषेक एवं सहस्रकुंकुमार्चन पूर्वक शोडषोपचार महापूजा संपन्न की जाती है। महापूजा के समय देवीमंदिर में सांप्रदायिक भजन के कार्यक्रम में सभी भक्तजन सहभागी होते हैं। महापूजा के पश्चात श्रीजी प्रदोषपूजा एवं कुमारिकापूजन संपन्न करते हैं।  दुर्गाष्टमी के अवसर पर श्री देवी की विशेष महापूजा संपन्न की जाती है। महानवमी के दिन श्रीजी नवचंडी याग की पूर्णाहुति संपन्न करते हैं एवं रात्रि प्रदोषपूजा के पश्चात सरस्वतीपूजन एवं घटोत्थापन के साथ श्री मधुमती पंचरात्रोत्सव सुसंपन्न होता है। इस काल में संपूर्ण माणिकनगर दिन-रात भजन-पूजन इत्यादि कार्यक्रमों में व्यस्त रहता है एवं सारा वातावरण देवीभक्ति से सराबोर होता है।

तो आइए, इस मंगलमय अवसर पर अपने परमप्रिय श्रीगुरु के भक्तों को वर प्रदान करने के लिए सज्ज भगवती मधुमती श्यामला के चरणों में नतमस्तक होकर श्रीजी के स्वर में स्वर मिलाकर गाएं – ‘‘व्यंकानाम जगज्जननी कुलभूषण ही अवतरली हो। शंका भ्रम चंड मुंड मर्दिनी रंकाऽमर पद देई हो।। पद्मासनी शुभ शांत मुद्रा। शुभ्रांबर कटि कसली हो। परमप्रिय गुरुभक्तां सुखकर। वरदेण्या ही सजली हो।।’’

(इस वर्ष श्रीदेवी पंचरात्रोत्सव बुधवार २१ से शनिवार २४ अक्तूबर तक माणिकनगर में परंपरानुसार संपन्न होगा। इस कालावधि में भजन पूजनादि कार्यक्रमों में सहभागी होकर भगवती मधुमतीश्यामला की कृपा संपादित करें)