योगिनी व्यंकम्मा ने आजीवन श्रीप्रभुचरणों की सेवा की तथा प्रभुमहाराज के प्रति असीम श्रद्धा-भक्ति के फलस्वरूप परमपद को प्राप्त हुईं। व्यंकम्मा, वैश्य कुल की एक साधारण विधवा स्त्री थी परंतु श्रीगरुचरणों के प्रति उनकी जो अचंचल भक्ति थी उस भक्ति ने उनको असाधारण शक्ति एवं सामर्थ्य से युक्त देवीपद पर असीन किया। श्रावण कृष्ण त्रयोदशी शके १७८४ को जब देवी व्यंकम्मा पंचतत्त्व में लीन हुईं तब श्रीप्रभु ने स्वयं अपनी देखरेख में वैदिक विधि-विधान के साथ देवी की समाधिविधि पूर्ण करवाई। उस समय पर किसी भक्त ने श्रीप्रभु के समक्ष श्रीदेवी व्यंकम्मा के समाधि मंदिर के निर्माण का विषय निकाला तो श्रीप्रभु ने कहा “जब उसे मंदिर बनवाना होगा तब वह अपने सामर्थ्य के बल पर मंदिर का निर्माण अवश्य करवाएगी। हमें उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए।”
श्रीप्रभु की इस उक्ति के अनुसार श्री मार्तंड माणिकप्रभु महाराज के कार्यकाल में ३० वर्ष बाद देवी व्यंकम्मा के भव्य समाधि मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। श्री रावजीबुवा के नेतृत्त्व में मुंबई के प्रभुभक्तों ने इस मंदिर के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मंदिर के पूर्ण होने पर श्री मार्तंड माणिकप्रभु महाराज ने शुभमुहूर्त पर देवी व्यंकम्मा की समाधि पर विधिवत् श्रीचक्र की स्थापना की और तभी से श्रीसंस्थान में देवी व्यंकम्मा की उपासना भगवान् दत्तात्रेय की शक्ति मधुमती श्यामला के रूप में की जाती है।
श्री सदगुरु मार्तंड माणिकप्रभु महाराज ने देवी व्यंकम्मा की महिमा को उजागर किया और भक्तजनों को देवी की अलौकिक लीलाओं का परिचय करवाया। श्रीदेवी की स्तुति में महाराजश्री द्वारा रचित जो पद आज हम गाते हैं उन पदों में महाराजश्री ने देवी व्यंकम्मा के आध्यात्मिक स्वरूप का अद्भुत वर्णन किया है। देवी के जिस दिव्य स्वरूप के दर्शन महाराजश्री ने पाए थे और जो कृपा उन्होंने प्राप्त की थी उसी अनुभूति को महाराजश्री ने अपनी सुंदर रचनाओं के माध्यम से हमारे लिए अभिव्यक्त किया है।
श्रीजी अपनी एक रचना में कहते हैं – ज्ञान विज्ञान मूल योनी। पंचकोषात्मक सिंहासनीं। जीव शिव मिथुन सौख्यदानी। चिन्मधुपानीं मग्नगानीं। तोची जगि शाक्त भावना त्यक्त सहज स्थितिमुक्त आत्मरतिसक्त। बालमार्तांड पादवंदी। जय जय उदो सदानंदी।। – जो ज्ञान और विज्ञान (विशेष ज्ञान) का मूल स्रोत है, जो अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय एवं आनंदमय इन पांच कोषों के सिंहासन पर आसीन होकर जीव एवं ईश्वर इस जोड़ी को सुख प्रदान करती है, जो ज्ञानरूपी मधु का पान करनेवाली है, जो अपने ही आत्मसुख के गायन में मग्न है, उस भगवती मधुमती के चरणों में सच्चा शाक्त, जीवभाव का त्याग करनेवाला, सहजस्थिति में मुक्ति का अनुभव लेनेवाला मार्तंड नामक बालक विनम्र भाव से नतमस्तक है, हे सदैव आनंद देनेवाली अथवा सदा आनंदरूप ब्रह्म से संयुक्त रहनेवाली माता, तुम्हारी जय हो।।
श्री मार्तंड माणिकप्रभु महाराज के ही काल में श्रावणमास में भगवती व्यंकम्मा की आराधना एवं आश्विनमास में मधुमती पंचरात्रोत्सव मनाने का क्रम प्रारंभ हुआ। महाराजश्री के काल से ही श्रीमधुमती पंचरात्रोत्सव यहॉं अत्यंत वैभवपूर्णरीति से मनाने की परंपरा रही है। संप्रति श्रीमधुमती पंचरात्रोत्सव आश्विन शुक्ल पंचमी से आश्विन शुक्ल नवमी तक माणिकनगर में अत्यंत हर्षोल्लास से मनाया जता है। पंचरात्रोत्सव के आरंभ के अवसर पर ललिता पंचमी के दिन श्रीजी पुण्याहवाचन संपन्न करते हैं। इसीके साथ श्री व्यंकम्मा मंदिर में घटस्थापन, मालाबंधन, अखंडदीपप्रज्ज्वालन, श्री देवी भागवत पारायण, चंडीपाठ, मल्लारी महात्म्य एवं मल्लारी सहस्रनाम पाठ इत्यादि कार्यक्रमों का श्रीगणेश होता है। पंचरात्रोत्सव के काल में नित्य सायं श्रीदेवी की लक्ष्मीसूक्तविधानपूर्वक पंचदशावर्तन श्रीसूक्त अभिषेक एवं सहस्रकुंकुमार्चन पूर्वक शोडषोपचार महापूजा संपन्न की जाती है। महापूजा के समय देवीमंदिर में सांप्रदायिक भजन के कार्यक्रम में सभी भक्तजन सहभागी होते हैं। महापूजा के पश्चात श्रीजी प्रदोषपूजा एवं कुमारिकापूजन संपन्न करते हैं। दुर्गाष्टमी के अवसर पर श्री देवी की विशेष महापूजा संपन्न की जाती है। महानवमी के दिन श्रीजी नवचंडी याग की पूर्णाहुति संपन्न करते हैं एवं रात्रि प्रदोषपूजा के पश्चात सरस्वतीपूजन एवं घटोत्थापन के साथ श्री मधुमती पंचरात्रोत्सव सुसंपन्न होता है। इस काल में संपूर्ण माणिकनगर दिन-रात भजन-पूजन इत्यादि कार्यक्रमों में व्यस्त रहता है एवं सारा वातावरण देवीभक्ति से सराबोर होता है।
तो आइए, इस मंगलमय अवसर पर अपने परमप्रिय श्रीगुरु के भक्तों को वर प्रदान करने के लिए सज्ज भगवती मधुमती श्यामला के चरणों में नतमस्तक होकर श्रीजी के स्वर में स्वर मिलाकर गाएं – ‘‘व्यंकानाम जगज्जननी कुलभूषण ही अवतरली हो। शंका भ्रम चंड मुंड मर्दिनी रंकाऽमर पद देई हो।। पद्मासनी शुभ शांत मुद्रा। शुभ्रांबर कटि कसली हो। परमप्रिय गुरुभक्तां सुखकर। वरदेण्या ही सजली हो।।’’
(इस वर्ष श्रीदेवी पंचरात्रोत्सव बुधवार २१ से शनिवार २४ अक्तूबर तक माणिकनगर में परंपरानुसार संपन्न होगा। इस कालावधि में भजन पूजनादि कार्यक्रमों में सहभागी होकर भगवती मधुमतीश्यामला की कृपा संपादित करें)
[social_warfare]
Jai Jagdamba vishwa Palni Madhu Mati Shamla Matha ki Jai
Jai Guru Manik 🙏 🙏🙏🙏🙏
Very nice and precise information related to Shri Madhumati Shyamala Devi by Chidghan Prabhu is highly appreciated.
All of us would be really blessed to seek her blessings by participating in the forthcoming Shri Devi Pancharatrotsava from 21st October 20.
Jai Guru Manik !
आदिमाया ,आदिशक्ति मधुमती शामलादेवींची महिमा लहाणपणापासुन ऐकुन व श्रीप्रभुचरित्रात वाचुन धन्य झालो.त्यांची श्रीप्रभु चरणी असलेली निस्सीम भक्ति , निष्काम भाव,समर्पण अनुकरणीय आहे.दरवर्षी देवी पंचरात्रोत्सव सुरु होताच मनाला आवरणे कठीण काम कारण घरी नवरात्र,कुलधर्म-कुलाचारामुळे माणिकनगरी जाणे अशक्य.लहाणपणाच्या आठवणी चलचित्रा प्रमाणे डोळ्यापुढे येवुलागतात.जगदंब विश्वपालिनीस कोटी-कोटी नमन व पुनःएकदा ह्या महिषासुररूपि करोना महामारी चे वध करुन जगाला सुख-शांती दे हीच प्रार्थना.
देवी व्यंकम्मा की अलौकिक महिमा तथा माणिकनगर में संपन्न होनेवाले देवी पंचरात्रोत्सव का संक्षिप्त ,सरल एवं सुंदर वर्णन.
‘व्यंकानाम जगज्जननी कुलभूषण ही अवतरली हो। शंका भ्रम चंड मुंड मर्दिनी रंकाऽमर पद देई हो।। पद्मासनी शुभ शांत मुद्रा। शुभ्रांबर कटि कसली हो। परमप्रिय गुरुभक्तां सुखकर। वरदेण्या ही सजली हो।।’’
Very nice explained…… Jai guru manik