जयजयाजी गुरु माणिका ।
तुजवाचूंनि कोण आणिका ।
प्रभुपाठाचा संकल्प निका ।
बाळका हाती करविला ।।

अक्षय्य निवास तुझा चैतन्यधामा ।
भक्तांस्तव प्रकटला माणिक ग्रामा ।
साक्षीस ठेऊन तुझिया नामा ।
लेखनकामा आरंभितो  |

प्रभुपाठ

लाडवंती नामी   पवित्र ती भुमि   |
भाग्यवंत दोन्ही   बया मनोहर   || १ ||

राम उपासना   करी नित्यक्रमा   |
तेणे तो परमात्मा  प्रसन्न झाला   || २ ||

रामनवमी दिनी   श्रीदत्तगुरुंनी   |
दृष्टांत देवोनी   धन्य केले   || ३ ||

दत्तजयंतीला   अवतार झाला   |
नामे ओळखिला प्रभु ‘माणिक’  || ४ ||

अलौकिक मुर्ती पसरली कीर्ती   |
प्रत्यक्ष त्रैमुर्ति प्रगट झाले   || ५ ||

गोकुळात खेळ करीतो गोपाळ   |
तैसा जमत मेळा प्रभु संगे   || ६ ||

गोविंदा गवळी प्रभुचा सोबती   |
जिवविला त्यासी प्रभुने बघा   || ७ ||

मनुष्य की प्राणी नसे भिन्न कोणी   |
प्रभु स्मतृगामी सर्वां ठायी   || ८ ||

प्रभु उपासना घडो नित्य नेमा
तुज पुरुषोत्तमा काय मागु  || ९ ||

वैकुंठीचा हरी नांदे भुमिवरी  |
तो संगमावरी प्रगट झाला  || १० ||

भाग्य ते उजळले पुण्य क्षेत्र झाले  |
नाम तया दिधले ‘माणिकनगर’  || ११ ||

श्री दत्तप्रभुंची  स्थापुनीया गादी  |
सकलमत पंथी चालवीला  || १२ |

प्रभुच्या मंदिरी मोक्षाची पायरी  |
तेथे माझा हरी नांदत असे  || १३ ||

प्रभुनाम मनी प्रभुनाम ध्यानी  |
प्रभुनाम कानी पडो सदा  || १४ ||

संसार सागर दुखाचे आगर  |
प्रभु पैल पार नेत असे  || १५ ||

प्रभु सांगे आम्हा मुक्तीचाच मार्ग  |
तेणे तगमग दुर होई  || १६ ||

माणिक माणिक वेदही म्हणती  |
शास्त्रही गाती प्रभुचीच महती  || १७ ||

प्रभू माझा ‘हरी’ प्रभू माझा ‘हर ‘  |
एक तत्त्व सारं, प्रभुजवळी   || १८ ||

माणिक नामाचा खरा तो उच्चार  |
जन्म मरण पार जीवा नेई  || १९ ||

भक्ताचा आनंद प्रभुच्याच मनी  |
कृपाळू होउन सांभाळीतो  || २० ||

मी नर पामर प्रभुचा चाकर  |
प्रभु  विश्वंभर सर्व व्यापी  || २१ ||

भाव नाही जेथ प्रभु कैसा तेथ  |
उठाठेव व्यर्थ करु नये   || २२ ||

करा प्रभु भक्ती प्रभु धरा चित्ती  |
परमार्थ प्रचिती येईल त्याने  || २३ ||

असत्य हे जग सत्य एक प्रभु  |
नाचु गाऊ धावु प्रभुकडे  || २४ ||

अवघाची हा देह प्रभुंच्या चरणी  |
समर्पण करुनी होऊ धन्य  || २५ ||

नाठवावा प्रपंच आठवावी भक्ती  |
मिळे ज्याने मुक्ती करा जपतप  || २६ ||

चराचरावरी प्रभुचीच सत्ता  |
मंत्र धरी चित्ता ‘ श्री माणिक ‘  || २७ ||

पाप असे मुळ दुखाचे कारण  |
समाधान जाण प्रभु जवळी  || २८ ||

प्रभुच्या संगती होई ज्ञान प्राप्ती  |
पार्थासी बोले जैसा नारायण  || २९ ||

पतित ते जन जे न मानिती प्रभुस  |
त्याने अवघा जन्म व्यर्थ होय  || ३० ||

अहंकार झाला तो तेथे बुडाला  |
प्रभुकृपेस पात्र कैसा होई  || ३१ ||

ठाई ठाई प्रभु सर्वत्र व्यापला  |
व्यर्थ वाया गेला शोधुनिया  || ३२ ||

नवनीत जैसे सुधामध्ये सिद्ध  |
तैसा हृदयस्थ प्रभु माझा  || ३३ ||

चालवीतो देह श्वासही चालवे  |
प्रभुच बोलवे सर्वाठायी  || ३४  ||

क्षणिक सुखाचा करुनीया त्याग  |
प्रभुचीच ओढ लागो जीवा  || ३५ ||

प्रभुनाम ओठी प्रभुनाम दिठी  |
प्रभुनाम कंठी सदा नांदो  || ३६ ||

प्रभुचीच भक्ती भक्तीचा सुगंध  |
भजनात दंग प्रभु माझा  || ३७ ||

भजनाविन कैसा होईल उध्दार  |
भक्ताचा आधार प्रभु एक  || ३८ ||

एक असे प्रभु, भक्त हे अपार  |
प्रभु परमेश्वर सर्वां ठायी  || ३९ ||

प्रभुनाम जप सहज साधन  |
यम नियम न लागे त्यासी  || ४० ||

भक्ताचे कल्याण करी नारायण  |
मुमुक्षु ते जन उध्दरीले  || ४१ ||

भक्तासाठी प्रभु सदैव अधीर  |
नामाची खीर आवडी बहु  || ४२ ||

स्तंभातुनी आला प्रल्हादे रक्षीला  |
उध्दवा लाभला कृष्ण सखा  || ४३ ||

विदुराचे गृही जावुनी केशवा  |
गोड मानी सेवा काय सांगु  || ४४ ||

प्रभुपाठ नित्य मुखे जरी गाती  |
पाप मुक्त होती अवघे जन  || ४५ ||

जो नर जाईल माणिकनगरी  |
वैकुंठ भुवरी भासे तया  || ४६ ||

नामाविन प्रभु ज्ञानाविन जन्म  |
व्यर्थ जाई कर्म प्रभुवीण  || ४७ ||

नामाचा गजर पडे जया कानी  |
पापाची झाडणी होई तेणे  || ४८ ||

माणिकनगरी संगमाचे तीरी  |
असे माझा हरी ‘ योगेश्वर ‘  || ४९ ||

भक्तीनेच पावे भक्तांचा कैवारी  |
जन्म मरण फेरी चुकवी प्रभु  || ५० ||

करावे सायास येवुनी जन्मास  |
भजावे प्रभुस ऐक्या भावे  || ५१ ||

करुनीया वश मनाचा आवेश  |
प्रभुनामी यश आहे सत्य  || ५२ ||

प्रभुपाठ ज्याचे निरंतर मुखी  |
संसारी दु:खी कैसा राहे  || ५३ ||

ज्या घरा लागले प्रभुचे चरण  |
तया होई जाण सुरलोग  || ५४ ||

प्रभु तज एक करीतो आर्जव  |
सदा चित्त राहो तुझिया चरणी  || ५५ ||

भेदभाव सांडी प्रभुचे वचन  |
आत्मा एक जाण सर्वांतरी  || ५६ ||

एक धरी ध्यास प्रभुनामाची आस   |
सोडु नको त्यास कदाकाळी   || ५७ ||

सोडी मोह माया नाशिवंत काया   |
अहंभाव जाया करा भक्ती   || ५८ ||

प्रभु नाही एैसे कोणते ठिकाण   |
चराचरी व्यापून प्रभुच राही  || ५९ ||

संजिवनीसम मज प्रभुनाम   |
धन्य बलभीम राम रुपी   || ६० ||

प्रभुनाम आम्हा पायसाचे दान  |
करुनी सेवन होवु धन्य  || ६१ ||

प्रभुनाम हेचि मोक्षाचे साधन  |
करा भक्तजन जवळी तया  || ६२ ||

ज्ञानाचा प्रकाश उतरला देहात  |
प्रभुनाम ध्यास घडो सदा  || ६३ ||

प्रभु नका देवु मज अहंकार  |
मागणे चरणावर हेचि एक  || ६४ ||

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