श्रीमनोहरप्रभु जयंती
कालयुक्तिनाम संवत्सर श्रावण अमावास्या 7 सितंबर 1858 का मंगलमय दिवस उदित हुआ और माणिकनगर की धरती सूर्य की पहली किरण के स्पर्श से पुलकित हो गई। वह दिन श्रावणमास उत्सव का अंतिम दिन था। घनघोर मेघों से ढका हुआ सूर्य माणिक नगर की धरती पर अवतरित होने वाले महायोगी के प्रथम दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए व्याकुल हो रहा था।
सौ. विठाबाई अम्मा के गर्भ को नवमास संपूर्ण होकर 10 दिन बीत चुके थे परंतु प्रसूति के कोई चिह्न नहीं दिख रहे थे। विठाबाई अम्मा अत्यंत अस्वस्थ थीं। उनकी यह अवस्था देखकर घर के लोगों ने श्रीप्रभु से इस समस्या को सुलझाने की प्रार्थना की। श्रीप्रभु जब अपनी भ्रातृवधु विठाबाई को देखने के लिए घर में आए तब उन्हें प्राणांतक वेदनाएँ हो रही थीं। यह देखकर श्रीप्रभु उनके के पास गए और गर्भस्थ शिशु को संबोधित करते हुए बोले “अपनी माता को इस प्रकार पीड़ा देना उचित नहीं है। तुम्हे जन्म लेना ही होगा। मैं तुम्हे यह आश्वासन दता हूँ कि तुमसे सांसारिक बंधनों को स्वीकार करने के लिए किसी भी प्रकार का आग्रह नहीं किया जाएगा। जिस दिव्य कार्य के लिए तुम अवतार ले रहे हो उस कार्य में किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लाया जाएगा। तुम्हारे आगमन की प्रतीक्षा हो रही है, अत: शीघ्र प्रगट हो जाओ।” श्रीप्रभु के इस आदेश के कुछ ही क्षणों बाद विठाबाई अम्मा के गर्भ से एक दिव्य पुत्र का जन्म हुआ।
तया उदरी अत्रि अंश आला।
मनोहर नामें गुरु अवतरला।
अगा या ब्रह्मचर्यव्रताला।
आधार जो॥
उस बालक के मुखमंडल के प्रखर तेज से चारों दिशाएँ दीपित हो गईं। इस शुभ समाचार को सुनते ही माणिकनगर के लोंगों ने श्री नृसिंह तात्या महाराज के इस महातेजस्वी पुत्र का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया। उस दिन ‘पोळा’ का त्योहार भी था और आस-पास के कस्बों से किसान अपने अपने सुसज्जित बैलों के जोड़ों के साथ प्रभुदर्शन के लिए माणिकनगर में एकत्रित हुए थे। वाद्यों की गड़गड़ाहट के बीच वृषभ-पूजन का कार्यक्रम चल रहा था। ढोल, नगाड़ों के भीषण कोलाहल से सारा माणिकनगर गूंज उठा था। नवजात शिशु के दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ी। उस सद्योजात बालक ने अपने रूप लावण्य से दर्शनार्थियों के मन को हर लिया। अपने कटाक्षमात्र से भक्तजनों के मन का हरण करने वाले इसी बालयोगी को हम श्री सद्गुरु मनोहर माणिकप्रभु महाराज के नाम से जानते हैं।
आज श्री मनोहर माणिकप्रभु महाराज की 162वीं जयंती है। इस अवसर पर हम महाराजश्री के चरणों में अनंत कोटि नमन अर्पित करते हैं।
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Anekkoti Brahamand nayak
Rajadhiraj Yogimaharaj
Sri Manohar Manikprabhu
Maharaj Ki Jai
Jai guru Manik