कल मेरे वॉट्सॅप पर किसीने एक वीडियो भेजा था। मैं वीडियो को डाउनलोड करके देखने लगा। किसी तेलुगू धारावाहिक का वह क्लिप था। उस दृष्य में ऐसा चित्रित किया गया था, कि एक पुरोहित मंत्रोच्चार करते हुए यजमान के हाथों से पूजा करवा रहे हैं। पंडितजी ने पूजा विधि का आरंभ ही ‘भक्तकार्यकल्पद्रुम गुरुसार्वभौम..’ के घोष से किया। उस धारावाहिक में श्रीप्रभु की ब्रीदावली को सुनकर मुझको और वहॉं उपस्थित सभीको बड़ा आश्चर्य हुआ। हमने सोचा, कि भला इस धारावाहिक में पंडितजी ने भक्तकार्यकल्पद्रुम का घोष कैसे किया? फिल्मों में तथा धारावाहिकों में पूजा-पाठ और अन्य धार्मिक विधियों के समय सामान्यरूप में जो मंत्र/श्लोक हमें सुनने को मिलते हैं उनसे हम सब परिचित हैं। परंतु इस धारावाहिक में जब हमने भक्तकार्य मंत्र सुना तो सब अचंभित रह गए। वैसे तो सारे विश्वभर में प्रभुभक्त इस महामंत्र का नित्य जप करते हैं परंतु किसी धारावाहिक में इस मंत्र को सुनना एक रोमांचक अनुभव था। मुझे लगता है कि ऐसा पहली ही बार हो रहा है और यह देखकर हम सभी प्रभुभक्तों को बड़ी प्रसन्नता हुई है।
जब पता लगाया गया कि यह कैसे हुआ तो मालूम पड़ा, कि उस धारावाहिक में पुरोहित का पात्र जिन्होंने निभाया है, वे प्रभु के ही भक्त हैं जिनका नाम है श्रीकिशन संगमेश्वर कुलकर्णी। किशन, तेलंगाणा स्थिति पटलूर ग्राम के प्रभुभक्त श्री संगमेश्वर राव कुलकर्णी के सुपुत्र हैं जिन्होंने ‘कुंकुम पूवू’ इस तेलुगु धारावाहिक में पुरोहित का पात्र निभाया है। हैदराबाद नगर में रहकर पौरोहित्य की विद्या में नैपुण्य प्राप्त करने वाले किशन को अभिनय क्षेत्र में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ और इस धारावाहिक में उन्होंने अपनी भूमिका बड़ी कुशलता से निभाई है। धारावाहिक की शूटिंग के समय निर्देशक ने उनसे कहा होगा, कि ‘पंडितजी आपको यजमान के हाथों पूजा करवानी है और कुछ मंत्र पढ़ने हैं।’ किशन ने उस दृष्य की शूटिंग में पूजा की शुरुआत ही भक्तकार्यकल्पद्रुम गुरुसार्वभौम . . इस महामंत्र से की और प्रभु के नाम की गूंज को लाखों लोगों तक पहुँचाकर विश्वभर में फैले प्रभुभक्तों को आनंदित किया।
जब हम किसी का अच्छा काम देखते हैं तो उसका उत्साहवर्धन करने के बजाय निंदा करने लग जाते हैं। आजकल के लोगों की यह आदत बन चुकी है। उस नज़रिये से सोचने वाले इस घटना को सुनकर कहेंगे, कि ऐसा उस पंडित ने कौनसा बड़ा तीर मारा है? उससे फायदा क्या हुआ? इसमें कौनसी बड़ी बात हो गई? इस कृत्य की इतनी प्रशंसा क्यों की जा रही है?
भगवान् जब समुद्र पर सेतु का निर्माण करवा रहे थे, तब वानरों की भागदौड़ को देखकर एक छोटी सी गिलहरी को भी लगा, कि मैं भी इस महत्कार्य में कुछ मदद करूं। उस गिलहरी ने छोटे-छोटे कंकर पत्थर उठाकर समुद्र में फेंके और सेतु के निर्माण में अपना योगदान दिया। वानरों द्वारा बनाए हुए प्रचंड सेतु में भले ही गिलहरी का योगदान बहुत छोटा सा था परंतु उस गिलहरी की जो भावना थी उससे प्रभावित होकर साक्षात् प्रभुरामचंद्र ने उस गिलहरी को अपने हाथों में लेकर उसका कौतुक किया। आज जब-जब रामसेतु की बात चलती है, तब-तब हर बार उस गिलहरी के प्रयासों को हम याद करते हैं। कार्य की विशालता से कार्य का मूल्यांकन नहीं होता अपितु उस कार्य के पीछे जो भावना होती है उसससे कार्य की महत्ता बढ़ती है। बस मन को प्रभु से युक्त करने की ज़रूरत है फिर अपने आप हमारे हाथों से होने वाला प्रत्येक कृत्य प्रभु के महान् कार्य का पूरक बनने लगता है।
पिछले अनेक वर्षों से इस संप्रदाय के निष्ठावान सद्भक्तों ने संप्रदाय के प्रसार-प्रचार के उत्तरदायित्त्व को कुशलता से निभाया है। इसीलिए आज हम देखते हैं, कि विश्वभर में प्रभु की महिमा का सुगंध सर्वत्र प्रसृत हुआ है। प्रभु के भक्त होने के नाते हम सभीका यह कर्तव्य है, कि हम अपनी क्षमता के अनुसार प्रभु संप्रदाय तथा प्रभु के उपदेशों के प्रचार-प्रसार के बृहत्कार्य में अपना योगदान देते रहें।
सकल मतांसी मान द्यावा।
स्वकीय संप्रदाय वाढवावा।
ज्ञानमार्गे अभ्यासावा।
शुद्ध जो।।
सद्गुरु मार्तंड माणिकप्रभु महाराज ने तो गुरुसंप्रदाय के इस श्लोक के माध्यम से प्रत्येक सांप्रदायिक प्रभुभक्त को यह आदेश दिया है कि वह अपने संप्रदाय के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयासरत रहे।
संप्रदाय के प्रसार की जब बात होती है, तब कुछ लोगों को लगता है, कि यह काम तो श्रीजी का है और वे अपनी अमोघ वाणी के माध्यम से प्रभु के दिव्य संदेश का प्रचार कर ही रहे हैं। हॉं यह बात सत्य है परंतु ऐसा कहकर सारा भार श्रीजी पर डालकर स्वयं कुछ न करना भी ठीक नहीं है। पीठ परंपरा के आचार्य होने के नाते श्रीजी का तो यह कर्तव्य है ही परंतु सांप्रदायिक अनुयायी होने के नाते संप्रदाय के प्रचार में हमारा जो योगदान होना चाहिए उसके प्रति हमें सदा सजग रहना चाहिए।
हमें लगता है, कि प्रचार-प्रसार का कार्य तो बहुत बड़ा है और यह अकेले व्यक्ति से संभव नहीं है। प्रचार-प्रसार के लिए तो बड़े-बड़े कार्यक्रमों के आयोजन करने होंगे, बड़े-बड़े बॅनर लगाने होंगे, बड़े मंडपों में लोगों की भीड़ इखट्टी करनी होगी और बहुत सारा धन खर्च करना पड़ेगा, बहुत समय देना होगा तब जाकर कहीं प्रभु का प्रचार होगा। किशन कुलकर्णी ने अपने अभिनव कृत्य से यह सिद्ध करके दिखा दिया है कि मन में प्रभु के प्रति निस्सीम प्रेम और संप्रदाय का अभिमान रखकर जब कोई भक्त अपने असमर्थ हाथों से प्रभु के लिए कोई छोटा सा भी काम करता है तब प्रभु स्वयं उस कार्य को अत्यंत महान् और विशाल बना देते हैं।
पटलूर के अभिमानी सद्भक्त किशन ने प्रभुनाम के प्रचार की जो अभिनव पद्धति अपनाई है वह सचमुच सराहनीय है। वैसे देखा जाए तो उस दृष्य की शूटिंग में उनसे किसी ने नहीं कहा था कि भक्तकार्य मंत्र बोलो परंतु जब भक्त का हृदय प्रभु से युक्त होता है तब उसके प्रत्येक कृत्य से प्रभु किसी न किसी रूप में जुड़ ही जाते हैं। अहंतारहित शुद्ध अंतःकरण में जब प्रभुसेवा की इच्छा जागती है तब स्वयं प्रभु इस देहरूपी रथ के सारथी बनकर हमारे हाथों से असाधारण कार्य करवाते हैं। इस विशिष्ट कृत्य से उन्होंने केवल अपने माता-पिता का ही नहीं अपितु समस्त भक्त परिवार का गौरव बढ़ाया है। आधुनिक प्रसार माध्यम से लाखों लोगों तक श्रीप्रभु की ब्रीदावली को पहुँचाकर उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण सेवा श्रीचरणों में समर्पित की है। इस प्रेरणादायी कार्य के लिए हम श्रीसंस्थान की ओर से तथा समस्त भक्त परिवार की ओर से श्री किशन कुलकर्णी का अभिनंदन करते हैं।
[social_warfare]
SRI SADGURU MANIK PRABHU MAHARAJ KI JAI
Jai guru manik
Jai guru manik
जय गुरु माणिक श्री गुरु माणिक
Jai Guru Manik.
ह्या असल्या उत्सफूर्त वागण्यालाच कदाचित इंग्रजीत Spontenious over flow म्हणत असतील. जय गुरु माणिक.
Let us organise one Satsang Meet in each village of Bidar in order to propagate Sri Prabhus teaching s of sakalmata sadbhavane JaiguruManik
We are so happy to see that bhaktakarya was recited in a tv serial.. It will now be telecasted globally too… Jai Guru Manik ????????????
-Vinay shringarpure
जय गुरू माणिक.
प्रभु भक्ती महान है l
Avadhoot Chintan Sri Gurudevdatta sadguru
Manik Prabhu Maharaj ki jai
Jai guru manik
श्री. किशनजी, आपका बहुत अभिनंदन
????????????
जय गुरु माणिक!
अति प्रसन्न वाटले