जयदेवि जयदेवि जय अन्नपूर्णे श्री अन्नपूर्णे।
मां पाहि मां पाहि सच्चित्सुख स्फुरणे॥ध्रु.।।

दर्वी-पात्रसुशोभितशशिमुखि श्रीचरणे।
क्षुत्पीडा संहारिणि भक्तोदर भरणे।
‘अन्नब्रह्मेति’ श्रुतिवाक्यालंकरणे।
सुर नर मुनि संतोषिणि षड्‌रस परिपूर्णे।।1।।

माणिकनगर निवासिनि माणिकरवि किरणे।
सिद्धप्रभु प्रस्थापित तेजाविष्करणे।
ज्ञानाज्ञान निवारिणी कलिमल संतरणे।
माणिक क्षेत्र कुटुंबिनी तापत्रय हरणे।।२।।

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