प्रभु सर्वत्र व्याप्त है। उपनिषदों में भी कहा गया है ‘सर्वं खल्विदं ब्रह्म।` जो कुछ है वह सब प्रभु का ही स्वरूप है। इस ब्रह्मांड के प्रत्येक कण में प्रभु बसा हुआ है। प्रभुचरित्र में कथा भी है, कि प्रभु ने बीदर नगर के भक्तजनों को अपने विश्वरूप का दर्शन दिया था। वे भक्तजन तो अत्यंत सौभाग्यशाली थे परंतु हमारा क्या? क्या हमें कभी प्रभु के दर्शन नहीं हो सकते?
बिलकुल हो सकते हैं और सदा होते भी हैं। श्रीदत्त जयंती महोत्सव के समय माणिकनगर आकर देखिए, आपको प्रभु के विश्वरूप के दर्शन अवश्य होंगे। यह महोत्सव हमें प्रभु की प्रभुता का, ऐश्वर्य का, सौंदर्य का एवं वैभव का परिचय देता है। अन्य समय पर सामान्यरूप से सर्वत्र व्याप्त प्रभु के विश्वरूप दर्शन हमें श्रीदत्त जयंती महोत्सव के समय प्रकर्ष से होते हैं। इस महोत्सव के समय प्रभु की जाज्वल्य शक्ति का सर्वत्र ऐसा संचार होता है, कि माणिकनगर के वातावरण में एक विलक्षण ऊर्जा प्रवाहित हो जाती है। यही वह समय है, जब प्रभु अपने विराट् स्वरूप को प्रगट करता है और क्षण-प्रतिक्षण हमें दिखाई देता रहता है। सदा अव्यक्तरूप में रहनेवाला प्रभु इस महोत्सव के समय नाना माध्यमों से अपने दिव्य स्वरूप को अभिव्यक्त करता है। इसीलिए अन्य समय की तुलना में श्रीदत्त जयंती महोत्सव के समय प्रभु के सगुणरूप के दर्शन पाना अत्यंत सहज एवं सुलभ है।
श्रीदत्त जयंती महोत्सव के समय माणिकनगर पधारने वाला प्रत्येक व्यक्ति प्रभुस्वरूप है किंबहुना प्रभु ही भक्त बनकर इस उत्सव में सम्मिलित होता है। वह प्रभु ही है जो बच्चों का रूप धरकर उत्सव में लगे मेले का लुत्फ उठाता है। वह बूढ़ा आदमी भी प्रभु ही है, जो ठंड में किसी अंगीठी के समीप बैठकर ठिठुरता है। मेले में पागल का वेश धरकर अपनी उटपटांग हरकतों से लोगों का मनोरंजन करने वाला भी प्रभु ही है। बाज़ार में घूमने वाला वह भिखारी भी प्रभु है जो दिनभर यात्रियों से दुत्कार खाता रहता है। वह मिठाई बेचने वाला भी प्रभु स्वरूप है और आकाश में आनंद से मिठाइयाँ उछालने वाला भी प्रभु ही है और ज़मीन पर गिरी उन मिठाइयों को अपने मित्रों से छीना झपटी करके चुनने वाला बालक भी प्रभु है। पानी को केवल अपने स्पर्श से तीर्थ बनाने वाला भी प्रभु है और उस तीर्थ में डुबकी लगाने वाला भी प्रभु ही है। जो प्रभु, समाधि में बैठा हुआ है वही समाधि का अलंकार करने वाला है और वही स्वयं आभूषण भी है। आरती की ज्योति को प्रकाशित करने वाला भी प्रभु है और वह आरती गाने वाला भी प्रभु ही है। चांदी के झूले में बैठकर मज़े में झूलने वाला भी प्रभु ही है और झूला झुलाने वाला भी प्रभु ही है। जुलूस में बाजे की गड़गड़ाहट में नाचने वाला भी प्रभु है और राजोपचार सेवा में नर्तन करने वाला भी प्रभु ही है। महाद्वार में कशकोल लिए घूमने वाला फकीर भी वही है और धुनी के पास बैठा चिलम के कश भरने वाला साधु भी वही है। दक्षिणा दरबार में झोली फैलाने वाला भी प्रभु ही है और खैरात में दिल खोलकर सबकी झोली भरने वाला भी प्रभु ही है। मंदिर की चौखट पर औलाद की कामना करने वाला भी प्रभु ही है और भीड़ में अपनी माँ के बटुए से पैसे चुराने वाला बालक भी प्रभु स्वरूप ही है। भक्तजनों के चप्पलों की रक्षा करने वाला प्रभु है और चप्पलें चुराकर व्यवस्था की परीक्षा लेने वाला भी प्रभु ही है। दरबार में गाने वाला भी प्रभु ही है और वाह कहने वाला भी प्रभु ही है। पौर्णिमा की रात में हज़ारों लोगों को कड़ाके की ठंड में खुले बदन से प्रसाद परोसने वाला भी प्रभु ही है और झूठे पत्तलों में लोटने वाला भी प्रभु ही है। उत्सव के लिए कुछ रुपयों का अनुदान देकर शाही व्यवस्था की अपेक्षा करने वाला भी प्रभुस्वरूप है और चुपचाप से हुंडी में लाखों उंडेलकर चले जाने वाला भी प्रभु ही है। जयंती की राजोपचार सेवा को स्वीकार करने वाला भी प्रभु ही है और उसी पूजा के समय मंदिर के किसी गरम कोने में चादर ओढ़कर झपकियाँ मारने वाला भी प्रभु ही है। दरबार में सिंहासन पर विराजमान होकर प्रसाद देने वाला भी प्रभु ही है और कतार को तोड़कर सबको पीछे ढकेलते हुए दर्शन के लिए उतावला होनेवाला भी प्रभु ही है।
यही प्रभु का विश्वरूप है जिसके दर्शन हमें श्रीदत्त जयंती महोत्सव के समय होते हैं। यह दर्शन अद्भुत आनंद प्रदान करने वाला है। प्रभु के इस स्वरूप को देखने के लिए किसी दिव्य दृष्टि की आवश्यकता नहीं है। आप भी प्रभु के इस स्वरूप को देख सकते हैं परंतु नाम-रूप के भ्रम से ऊपर उठकर आपको अपनी दृष्टि को परिवर्तित करना होगा तभी यह संभव है। सर्वत्र प्रभु को देखने का अभ्यास यदि करना हो तो श्रीदत्त जयंती उत्सव से अच्छा दूसरा अवसर नहीं है। इस बार जब आप आएँ तो ध्यान रखें कि प्रभु केवल मंदिर के गर्भग्रह में ही नहीं अपितु समस्त दिशाओं में विभिन्न रूपों में आपको दर्शन दे रहा है। श्रीदत्त जयंती उत्सव में पधारिए और प्रभु के इस विश्वरूप को पहचानकर अपने हृदय में विराजित प्रभु के दर्शन कीजिए। मेंरा दावा है, कि प्रभु के इस विश्वरूप का दर्शन पाकर हमारे सद्गुरु श्री मार्तंड माणिकप्रभु महाराज के इस वचन की प्रत्यक्ष अनुभूति आप सबको अवश्य प्राप्त होगी।
तत्पद ईश्वर तूं क्रीडाया। एकचि बहुधा होसी।
आपणां विलोकुनी अति हर्षे। सर्वही आपणचि होसी।
प्रवेश करूनियां निजसत्तें। दृश्य जडां चेतविसी।
नामरूपाते दावुनियां। स्वस्वरूप लोपविसी॥
జై గురు మాణిక్ 🙏
Jai Guru Manik 🙏
This is true, Anubhav ghyawa🙏
सर्व रूपे हा श्रीप्रभु जाण… सकलमत संप्रदायाचं हे परमविशेष आहे… सामान्य जनांच्या दृष्टीत आणि बुद्धीत अमुलाग्र बदल घडविण्याची ताकद माणिकनगरीच्या भेटीत आहे. भक्तकार्यकल्पद्रुम गुरूसार्वभौम श्रीमाणिकप्रभु आपणांस संपूर्णपणे व्यापून टाकतो…जरूर अनुभव घ्यावा… श्रीमाणिकनगर येथील चैतन्याची अनुभूती खरोखर अनुभवण्यासारखी आहे… जय गुरू माणिक…
,🙏 ” जय गुरू माणिक ” 🙏
Jai Guru Manik
Shripad Shrivallabhanchya charitrachi athvan zhali
Avadhoot Chintan Shri Gurudev Datta
Digambara Digambara Shripad Vallabha Digambara
Manik Tumbyan jagad volage. When one experience the existance of Manik Prabhu everywhere,experiencer immerce with experience. There is no one.
जय गुरू माणिक , प्रभू महाराजांची विश्र्वव्याप्ती छान प्रकारे वर्णन केली आहे.
प्रभू महाराज चराचरात आहेत.
జై గురు మాణిక.. శ్రీ గురు మాణిక….🙏💐🙏