गुरु द्वारे मैं फिर फिर आऊं
गुरु चरणों में गिर गिर जाऊं
गुरु जब मस्तक हस्तक धारे
तब लग जावे बेडा पारे

गुरु वाणी नित सुनत जाऊं मैं
गुरु मारग ही चुनत जाऊं मैं
गुरु जब दीप बने मोरे पथ को
छोर मिले मोरे जीवन रथ को

गुरु दरसन बिन व्यर्थ नयन हैं
गुरु सेवा बिन व्यर्थ जीवन है
गुरु के काज मो रत तन मन धन
सफल भये तब इह मनुज जनन

गुरु मिले, मोरे सद्भाग बडे हैं
गुरु संग मन-मती तार जुडे हैं
गुरुकृपा बरस रही नित निसदिन
थान न मेरो अब गुरु चरणन बिन

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