भक्ति मुझको मुक्त करती बाँधती तुमको प्रभो।
अतिरथी मुझको बनाती सारथी तुमको प्रभो।।ध्रु.।।
बद्ध को है मुक्त करती, मुक्त को है बाँधती।
भक्ति तुमको भी प्रभो परतंत्रता में डालती।
द्यूतक्रीडा में हराती पार्वती तुमको प्रभो।
भक्ति मुझको मुक्त करती बाँधती तुमको प्रभो।।१।।
अश्व अर्जुन के प्रभो निर्लज्ज होकर हाँकते।
पत्तलें जूठी उठाना भी प्रभो तुम जानते।
द्रौपदी अधिकार से फटकारती तुमको प्रभो।
भक्ति मुझको मुक्त करती बाँधती तुमको प्रभो।।२।।
छीन आकृति भक्त की साकारती भगवान को।
‘जीव हूँ’ यह भाव हरकर शिव बनाती ‘ज्ञान’ को।
‘ज्ञान’ किस विधि से करे अब आरती तुमको प्रभो।
भक्ति मुझको मुक्त करती बाँधती तुमको प्रभो।।३।।
🙏जय गुरु माणिक,
अतिशय सुंदर काव्य. कृपया हे संगीतबद्ध केल्यास ह्याची गोडी द्विगुणीत होईल.
श्रीजी आप दिव्य बुध्दी के दाता एवं ज्ञान चक्षु विधाता है यही साक्षात्कार हमे काव्य प्रतिभा हे मिल रहा है
जय गुरु माणिक
प्रभु की भक्ती का अपार महिमा
जय गुरु माणिक 🙏🙏
अतिशय सुंदर काव्य
श्री ज्ञानराज माणिक प्रभू ची प्रत्येक रचना आपल्या ज्ञानात भर घालणारी असते
आपल्याला विचार करायची प्रेरणा देणारी असते
जय गुरु माणिक
अतिशय सुंदर रचना
श्री ज्ञानराज माणिक प्रभूंची प्रत्येक रचना आपल्या ज्ञानात भर घालणारी असते
आपल्याला विचार करण्याची प्रेरणा देणारी असते
जय गुरु माणिक
खुप छान काव्य, वाचुन आनंद झाला,हेच श्रीजींचया मुखातून संगीतमय ऐकायला मिळाले तर मन भरून तृप्त होइल
मोक्षकारणसामग्र्यां भक्तिरेव गरीयसी 🙏🙏🙏
भक्ति की महिमा का अत्यंत सुंदर वर्णन
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मोक्षकारणसामग्र्यां भक्तिरेव गरीयसी 🙏🙏🙏
भक्ति की महिमा का अत्यंत सुंदर वर्णन 👌👌
कविता की सुंदर रचना है । प्रभु के भक्ति की अद्भुत महिमा है ।🙏🙏💐🌹🌺
Mharajachi prabhu varil bhaktichi kavy rachna ati sunder aahe
🙏🌺#श्री_माणिक्यप्रभोर्विजयते🌺🙏