वो दिखा रहे हैं जल्वा चेहरा बदल बदल के।
मरकज़ हैं वो अकेले सारी चहल-पहल के।।

देखी जो शक्ल उनकी लगते हैं अपने जैसे।
मिलने उन्हें चला है ये दिल उछल उछल के।।

उनको गले लगाकर पहलू में बैठने को।
बेताब हो रहा है दिल ये मचल मचल के।।

शीशे में अक़्स अपना देखा वो दिख रहे हैं।
धुंधला रही हैं आँखें आंसू निकल निकल के।।

जो पास आ गए हैं वो दूर जा न पाऍं।
ऐ ‘ज्ञान’ अब उन्हें है रखना सँभल सँभल के।।

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