परम पूज्य श्रीजी, अधिक मास के निमित्त गत तीस दिनों से हम सभी को आपके कारण, गीता ज्ञानयज्ञ का लाभ लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हम प्रभुभक्तों के लिए यह जीवन का एक अविस्मरणीय प्रसंग होगा। आपके द्वारा किया गया प्रबोधन अद्वितीय था और मैं निःसंदेहरूप से यह कह सकता हूँ कि, इस प्रबोधन से कईं लोगों का जीवन के तरफ देखने का नज़रिया बदल गया होगा।
आपका प्रबोधन बीजरूपी गीता का ज्ञानरूपी वृक्ष था। जिसने भी इस वृक्ष का फल चखा, वह धन्य हो गया ऐसा मेरा मानना है। श्रीमद्भगवद्गीता का विषय इतना गहन है, कि सहसा जब हम पढ़कर समझने का प्रयास करते हैं तो विषय का संपूर्ण बोध नहीं हो पाता। परंतु गीता के कठिनतम रहस्यों को भी आपने अपनी शैली में जिस कुशलता से प्रस्तुत किया, हम सचमुच मंत्रमुग्ध रह गए।
गीता का प्रत्येक वचन, विस्तार से समझाने हेतु आपके द्वारा दिए गए उदाहरण, दृष्टांत तथा अन्य प्रासंगिक सन्दर्भ, इतने बोधपूर्ण तथा मधुर थे कि, हम सब तृप्त हो गाए। बिलकुल वैसे ही जैसे शिशु, दूध का आकंठ पान करने के बाद तृप्त होता है।
मैं समझता हूं कि, इन तीस दिनों के प्रबोधन से श्रोतृ वर्ग में हर किसी का दुःख थोड़ा तो कम हुआ ही होगा और सबके भीतर कोई न कोई परिवर्तन अवश्य हुआ होगा। चाहे वह कॉलेज का युवा होगा, चाहे कोई करियर की चिंता में नौकरी ढूंढने वाला हो, चाहे कोई विवाह के चक्कर में हो, चाहे कोई व्याधि से पीड़ित हो, या कोई वृद्ध हो, हर व्यक्ति को उसकी समस्या का हल ज़रूर मिला है।
आपने जिस तन्मयता और करुणा के साथ हम सभी का प्रबोधन किया, उसके बदले यदि शिष्य होने के नाते आपके उपदेशों का एक प्रतिशत भाग भी हम आत्मसात करेंगे और थोड़ा सा भी यदि अनुसरण करेंगे तो निश्चित ही हमारा उद्धार होगा इसमें संशय नहीं है।
गत अनेक वर्षों से आपके आध्यात्मिक मार्गदर्शन के फलस्वरूप आज हमारे संप्रदाय में एक बहुत अच्छा परिवर्तन हुआ है। अनेक सद्भक्तों की वेदांत में रुचि बढ़ रही है और प्रभु के उपदेशों के अर्थ को जानने – समझने की लालसा बढ़ती जा रही है। यह एक बहुत ही कौतुकास्पद बदलाव है जिसका श्रेय केवल आपको जाता है। हमारे सांप्रदायिक वांग्मय में इतने अनमोल हीरे-मोती अनेक वर्षों से छिपे हुए हैं परंतु आज आपके मार्गदर्शन के कारण ही उन अनमोल उपदेशों को हम समझ पा रहे हैं, आत्मसात् कर पा रहे हैं। आप तो सद्गुरु होने के नाते केवल अपना कार्य कर रहे हैं परंतु शिष्य होने के नाते हमारा भी यह कर्तव्य बनता है, कि हम आपके बताए हुए मार्ग पर सफलतापूर्वक चल कर दिखाऍं। हम भक्तजनों के जीवन को परिवर्तित करके हमारे भीतर अद्वैत वासना पैदा करने के लिए मैं समस्त भक्त परिवार की ओर से आपको नमनपूर्वक धन्यवाद कहता हूँ।
आपके मुखकमल से निरंतर ज्ञान की सरित इसी तरह बहती रहे और श्रीप्रभु के दिव्य संदेश के प्रचार-प्रसार का जो महान् कार्य आप विश्वभर में कर रहे हैं उससे लाखों – करोड़ों लोगों का उद्धार होता रहे। ऐसी मंगल कामना प्रभु चरणों में करते हुए विराम लेता हूँ।
[social_warfare]
Totally agree with Venkateshji Joshi.
Poojya Shreeji, request you to please conduct lectures for other Adhyayas of Bhagavadgita as well in coming future.
Koti koti pranam! Jai Guru Manik!!
Very nice explanation of Geeta Addhya 13 14 15 in the month of Adhikmas.Sriji is Ocean of Ryan.JAIGURUMANIK.
एकदम योग्य कहाँ आपने।श्री ज्ञानराज माणिकप्रभू महाराज श्रीने इतने सरलतासे और सहजतासे इस कार्यक्रम में हम सबको गीता के ज्ञानसेअवगत कराया की सबकी उसके प्रती रुची बढती गयी।
धन्यवाद.
जय गुरु माणिक.
SRI SADGURU DNYANRAJ MANIK PRABHU MAHARAJ KI JAI SRI MAHARAJ KE CHARNO ME SHATH SHATH KOTI PRANAM
Jai guru Manik
डॉ. जोशी जी आपले विचार शत प्रतिशत योग्य आहेत, आम्ही तन व मनाने पुर्ण सहमत आहोत.
जय गुरु माणिक.
श्री ज्ञानराज माणिक प्रभू हे ज्ञानाचा सागर आहेत
जय गुरु माणिक 🙏🙏
फारच सुरेख मनोगत आहे.मी आपल्याशी पूर्णपणे सहमत आहे
जय गुरु माणिक
Shreeji’s daily Pravachan during Adhik Maas was so enlightening that we forgot all our worries for one month and gained so much knowledge about the minute aspects of the important chapters of Bhagwat Gita. Looking forward to many more such enlightening Pravachans by Shreeji.
Jai Guru Manik.